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24 December 2022
शिव और आयुर्वेद -भाग-2
शिव और आयुर्वेद -भाग-2
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 नाड़ी विज्ञानं  बाल रोग के प्रणेता


देवों के देव आदि देव भगवान सदाशिव त्र्यंबक शंकर वह कैलाश के निवासी हैं ।भगवान ने वेदों का सस्वर प्रणयन किया और संगीत दिया स्वरों का निर्माण किया इसी क्रम में पंचम वेद आयुर्वेद काभी ज्ञान उन्होंने ऋषियों को और अपने शिष्य रावण को दिया ।इसी आयुर्वेदिक ज्ञान से रावण ने नाड़ी विज्ञान का एक बहुत बड़ा ग्रंथ रावण सहिंता लिखा। नाड़ी विज्ञान का ज्ञान भगवान शिव ने ही रावण को दिया था ।इसके साथ ही बालकों की चिकित्सा भी भगवान शिव ने रावण को बताई थी ।क्योंकि कार्तिकेय के जन्म के समय बहुत सारी कठिनाइयां आई थी और उनके निवारण के लिए भगवान ने विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के साथ ग्रह या भूत बाधा चिकित्सा पद्धति भी प्रारंभ की थी। इस प्रकार हम देखते हैं कि भगवान नाड़ी विज्ञान ,बालरोगभूत बाधा और ग्रह विज्ञान के भी आदि चिकित्सक हैं। 


                                                                              विष विज्ञान एवम् वनस्पति शास्त्र के प्रथम विशेषज्ञ


समुद्र मंथन में 14 रत्नों में अमृत और विष यह 2 रत्न भी योग मूल रूप से प्रकट हुए। जहां अमृत के लिए भगवान धन्वंतरि देवता थे ।वही विष उत्पन्न होने पर उसके शमन के लिए उसके धारण के लिए सदा शिव शंकर ने अपने आप को प्रस्तुत किया ।वस्तुतः भगवान शिव विश्व के प्रथम विष वैज्ञानिक भी थे ।जिन्होंने स्थावर विष जिसको की कालकूट विष कहा गया और जो समुद्र मंथन से प्रकट हुआ उसके चिकित्सा की उसको गले में धारण किया। आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार स्थावर विष की चिकित्सा जंगम अर्थात जानवर के जहर से होती है ।क्योंकि भगवान शिव सदा गले में काला नाग धारण करते हैं वह इस बात का प्रतीक है कि वह जंगम विष के भी अधिकारी थे। उन्होंने इस स्थावर विष को जंगम विष के प्रयोग से नष्ट किया। साथ ही आयुर्वेदिक चिकित्सा सिद्धांतों में विष चिकित्सा के अंतर्गत विभिन्न वानस्पतिक उप विषों के माध्यम से भी चिकित्सा करना कहा गया है ।उसी के अंतर्गत धतूरा बिल अर्क करवीर कनेर इत्यादि इत्यादि विषों को विष चिकित्सा में प्रयुक्त किया गया है। हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव के ऊपर उक्त समस्त विषो का अभिषेक किया जाता है। बिल्वपत्र धतूरा अर्क पत्र (आक), कनेर की पत्तियां ,कनेर के फूलकनेर के पुष्प ,अरंड फलअफीम इत्यादि वानस्पतिक द्रव्यों से भगवान का अभिषेक होता है। लोक सुक्तियों में और लोक कथाओं में भी भगवान को धतूरा पीने वाले देवता के रूप में अथवा नशा करने वाले देवता के रूप में कहा जाता है। परंतु इसके पीछे की जो वास्तविकता है वह यह है कि भगवान स्थावर विष और जानवर की चिकित्सा विभिन्न वनस्पतियों के माध्यम से करते हैं ।इस दृष्टि से भगवान विश्व के प्रथम वनस्पति शास्त्र वनस्पतियों के माध्यम से चिकित्सा करने वाले सर्व प्रथम वैद्य और विष विज्ञान के अधिष्ठाता हुए 


डॉ. रामतीर्थ शर्मा

विभागाध्यक्ष-

संहिता सिद्धान्त एवम् संस्कृत

शासकीय धन्वन्तरि आयुर्वेद महाविद्यालयमंगलनाथ मार्ग,उज्जैन


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