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20 December 2022
शिव और आयुर्वेद भाग -1
डॉ. रामतीर्थ शर्मा
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                                                                                        प्रथम शल्य चिकित्सक


भगवान का विवाह दक्ष पुत्री सती से हुआ दक्ष के अहंकार के कारण से विग्रह होना स्वाभाविक ही था और उस विग्रह का कॉल आया ।दक्ष यज्ञ के समय जहां माता सती भगवान शिव के अपमान से क्रुद्ध होकर अपने आप को योगाग्नि में भस्म कर लेती हैं ।जिसके कारण भगवान शिव के गणों ने दक्ष के यज्ञ का ध्वंस किया और दक्ष को मृत्यु दंड दिया ।उन्होंने दक्ष का शीश काटकर अलग फेंक दिया ।सारे संसार में त्राहि त्राहि मच गई। भगवान विष्णु ,ब्रह्मा जी और समस्त देव आदि ने मिलकर भगवान भोलेनाथ शिव शंकर शंभू जी से निवेदन किया ।दक्ष को जीवित करें अन्यथा प्रजा का पालन कैसे होगा ?


तब भगवान शिव ने बकरे के सिर का प्रत्यारोपण दक्ष के सिर पर किया। यह चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक अत्यंत आश्चर्यजनक कार्य था जो कि वर्तमान में ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के नाम से जाना जाता है।


इसी प्रकार भगवान शिव के छोटे पुत्र विनायक गणेश के बारे में भी एक कथा मिलती है गणेश के द्वारा भगवान को भवन में प्रवेश देने पर विग्रह हुआ और उस विग्रह में उस युद्ध में गणेश का सिर भी कटा माता पार्वती के क्रोध के कारण भगवान शिव ने हाथी के बालक का सिर गणेश के सिर के स्थान पर प्रत्यारोपित किया यह भी अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में एक चमत्कारिक और वैज्ञानिक शल्यचिकित्सा थी। राजयक्ष्मा ( ट्यूबरक्लोसिस) के प्रथम वैद्य 


भगवान भोलेनाथ दक्ष प्रजापति के दामाद थे ।उनकी पत्नी सती के 63 बहनें थी। जिनमें से 28 बहनों की शादी औषधियों के राजा और अत्रि के पुत्र चंद्रमा के साथ हुई थी ।उन पत्नियों में रोहिणी नामक जो पत्नी थी उस पर चंद्रमा की विशेष आसक्ति थी। अत्यधिक मैथुन के कारण चंद्रमा के शुक्र का और ओज का क्षय हो गया ।आयुर्वेदिक चिकित्सा सिद्धांतों में राज्य क्षमा के कारणों में शुक्र क्षय के कारण से धातुओं के होने वाले प्रतिलोम क्षय को भी एक कारण माना गया है। शुक्र के क्षय होने से शरीर की मज्जा अस्थि मेद मांस रक्त और रस और आदि धातुओं का  क्रमशः क्षय होता जाता है ।उसके कारण से शरीर सारहीन और बहुत सारी व्याधियों का आश्रय स्थल बन जाता है ।तब माता सती और रोहिणी आदि समस्त पत्नियों के निवेदन पर भगवान शिव ने अश्विनीकुमारों के सहयोग से राज यक्ष्मा की चिकित्सा की। वहां पर सिद्धांत दिया जीवन में संयम और मर्यादा का क्या स्थान होना चाहिए ।यह ज्ञान उन्होंने विश्व को दिया ।आज भी चरक संहिता के अंदर राजयक्ष्मा  प्रकरण (चिकित्सा स्थान 8)में उक्त चिकित्सा सिद्धांत को कहा गया है


                                                                                    प्रथम ज्वर के वैज्ञानिक चिकित्सक 


माता सती के द्वारा स्वयं को दक्ष यज्ञ की योगाग्नि में भस्म करने के बाद भगवान शिव के गणों ने दक्ष यज्ञ को ध्वस्त किया और जब यह समाचार भगवान को लगा तो अत्यधिक क्रोध की उत्पत्ति के कारण से तथा रुद्र के गणों के उत्पात से संपूर्ण संसार संतापित् और विषयुक्त हो गया ।जिसके कारण ज्वर की उत्पत्ति हुई (चरक चिकित्सा ज्वर अध्याय 3) समस्त संसार के लोगों के द्वारा भगवान शिव की उपासना करने पर भगवान ने दक्ष और अश्विनी कुमार को और इंद्रादि देवताओं को ऋषि-मुनियों को ज्वर चिकित्सा के बारे में बताया और कहा कि मानसिक दोषों काम, क्रोध,लोभ, मोह इत्यादि को दूर कर के भी ज्वर जीता जा सकता है तथा आम विष का उत्पन्न होना भी ज्वर का एक कारण है अतः आम की उत्पत्ति शरीर में यदि ना हो तो भी जो उत्पन नहीं होगा ।इस तरह ज्वर के और विष के मूल कारण और उनकी चिकित्सा का भी वर्णन भगवान भोलेनाथ ने किया।


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